गणेशजी को चतुर्थी ,नागराज को पंचमी , कार्तिकेयजी को षष्टी , सूर्यदेव को सप्तमी ,दुर्गाजी को नवमी , ब्रह्माजी को दशमी , भगवान विष्णु को द्वादशी , कामदेव को त्रयोदशी तथा भगवान शंकर को चतुर्दशी तिथि विशेष प्रिय है । प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की अर्धरात्री व्यापिनी चतुर्शी भगवान शंकर शिव का सान्निध प्रदान करने वाली होती है । चूंकि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अर्धरात्री में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था , इसलिए फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्री महाशिवरात्रि मानी जाती है । महाशिरात्रि के दिन व्रत करके रात्रि में शिवपूजन करने से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है तथा भुक्ती व मुक्ति की प्राप्ति होती है । इस व्रत को सभी वर्ण के स्त्री – पुरूष व बाल –युवा – वृद्ध सभी कर सकते है ।
महाशिवरात्रि की रात्रि में सर्वव्यापी भगवान शिव संपूर्ण चल व अचल शिवलिंगों में संक्रमण करते है । एक समय संपूर्ण देवताओं ने सब लोकों पर अनुग्रह करने की इच्छा से भगवान शंकर से प्रार्थना की – ‘भगवान ! समस्त पापों से भरे हुए इस कलिकाल में कोई एक दिन ऐसा बताइए , जो वर्षभर के पापों की शुद्धि कर सके । जिस दिन आपकी पूजा करके मनुष्य सब पापों से शुद्ध हो सके , क्योकि कलिकाल में अशुद्ध मनुष्यों के द्वारा दी हुई कोई भी वस्तु हमें नहीं मिल पाती है ।“ देवताओं की प्रार्थना पर भगवान पर शिव ने कहा –‘देवेश्वरो” ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात के समय मनुष्यों के वर्ष भर के पापों को शुद्ध करने के लिए भूतल के समस्त चल –अचल शिवलिंगों में मै संक्रमण करूंगा । जो मनुष्य उस रात में निम्न मंत्रों द्वारा मेरी पूजा करेगा , वह पापरहित हो जाएगा ।
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