Harivanshrai Bachchan ki kuchh panktiyan:
📗सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
📕सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
📔शौक तो माँ-बाप के पैसो से पूरे होते हैं,
अपने पैसो से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं..
📘जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
📙एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
📗कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
📕चाहता तो हु की ये दुनियाबदल दू ....पर दो वक़्त की रोटी केजुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों
📒महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला ...!
📔युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है!!'
📓अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यों ??और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र क्यों ???
📙"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं,एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'......
📘" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाताऔर दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"
📕मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।
📗किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर.
--हरिवंशराय बच्चन
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